महाराष्ट्र में भाषा विवाद – अंदर की बातें

 महाराष्ट्र में भाषा विवाद – अंदर की बातें



1. मराठी अस्मिता (पहचान) का मुद्दा


महाराष्ट्र में मराठी लोग डरते हैं कि हिन्दी या अन्य भाषाओं के बढ़ते प्रभाव से उनकी भाषा और संस्कृति हाशिए पर न चली जाए।


खासकर मुंबई, पुणे, ठाणे जैसे शहरों में बड़ी संख्या में यूपी, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि के लोग बस गए हैं।


इससे मराठी भाषियों को लगता है कि सरकारी नौकरियों, कारोबार, राजनीति और संस्कृति पर गैर-मराठी लोग हावी न हो जाएं।



2. राजनीतिक पार्टियों का रोल


शिवसेना (और अब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना – MNS)


इनका जन्म ही मराठी अस्मिता के नारे पर हुआ।


शिवसेना शुरू से कहती आई है कि “मुंबई महाराष्ट्र की है,” और “मराठी मानुष” (मराठी व्यक्ति) को प्राथमिकता मिले।


MNS (राज ठाकरे की पार्टी) ने तो हिन्दी बोलने वालों के खिलाफ आंदोलन भी किए। ट्रेन स्टेशनों पर हिन्दी बोर्ड हटाने, हिन्दी में बात करने पर कुछ लोगों की पिटाई, इत्यादि घटनाएँ हो चुकी हैं।



कांग्रेस, एनसीपी, बीजेपी


ये पार्टियाँ थोड़ा संतुलन रखने की कोशिश करती हैं। मराठी को सम्मान देने की बात करती हैं, पर कट्टर विरोध नहीं करतीं।


व्यापारिक और औद्योगिक हित भी ध्यान में रखती हैं क्योंकि हिन्दी या अन्य भाषी लोग भी वोटर और टैक्सपेयर हैं।




3. व्यापार और रोजगार का कनेक्शन


मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है। यहाँ बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, फिल्म इंडस्ट्री, मीडिया, बैंकिंग, स्टॉक मार्केट सब हैं।


यहाँ पर हिन्दी और अंग्रेज़ी का खूब इस्तेमाल होता है क्योंकि यहाँ का कामकाज और बिज़नेस पैन-इंडिया है।


पर मराठी संगठनों को डर है कि “अगर सब हिन्दी/अंग्रेज़ी में हो गया, तो मराठी रोजगार कैसे पाएंगे?”



4. फिल्म और थिएटर का विवाद


मराठी फिल्में और नाटकवालों की शिकायत रहती है कि मल्टीप्लेक्स में हिन्दी फिल्मों को ज़्यादा स्क्रीन मिलती हैं।


मराठी सिनेमा वालों की माँग है कि कम-से-कम कुछ स्क्रीन मराठी फिल्मों के लिए रिज़र्व रखी जाएं।


महाराष्ट्र सरकार ने कई बार नियम लाने की कोशिश की है कि मल्टीप्लेक्स में मराठी फिल्मों के लिए शो रखना अनिवार्य हो।



5. हिन्दी बोर्ड और साइनबोर्ड विवाद


नगरपालिका और सरकार कहती है कि दुकानों, होटलों, ऑफिसों पर मराठी में बोर्ड होना ज़रूरी है।


व्यापारी वर्ग (कई गैर-मराठी) कहते हैं कि उनके ग्राहक हिन्दी या अंग्रेज़ी पढ़ते हैं, मराठी में बोर्ड का मतलब एक्स्ट्रा खर्च और दिक्कत।


MNS और शिवसेना ने कई बार दुकानों के बोर्ड तोड़े या व्यापारियों पर दबाव डाला।



6. सामाजिक स्तर पर विभाजन


आम तौर पर लोग शांति से रहते हैं। पर जब नेता भाषाई भावनाएँ भड़काते हैं, तब समाज में मराठी बनाम गैर-मराठी का मुद्दा गर्म हो जाता है।


नौकरी, एडमिशन, सरकारी योजनाओं में मराठी कोटा जैसे मुद्दों पर बहस होती रहती है।



7. कानूनी और संवैधानिक पहलू


भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी भारतवासी कहीं भी बस सकता है, काम कर सकता है, भाषा बोल सकता है।


पर राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वे अपनी राजभाषा को प्रमोट करें। बस यहीं पर खींचातानी होती है कि कहां तक प्रमोट करें कि वह दूसरों पर थोपना न लगे।




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असली सच


विवाद मराठी बनाम हिन्दी नहीं है, असल में यह पहचान और रोजगार का डर है।


राजनीतिक दल इसे मुद्दा बनाकर वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश करते हैं।


मुंबई जैसे शहर की बहुभाषिक आबादी के चलते यह मुद्दा कभी खत्म नहीं होता, बल्कि समय-समय पर फिर से गरम हो जाता है।

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